शेयर खरीदने से पहले क्या जांचें | Share खरीदने से पहले क्या करना चाहिए | शेयर खरीदते समय क्या ध्यान रखें | शेयर में निवेश करते वक्त कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए | Important key factors to check before buying a stock | What should we check before buying stocks
शेयर मार्केट में निवेश करने से पहले क्या जांचें? 2025 में शेयर खरीदने से पहले क्या जांचें? जानिए स्मार्ट इन्वेस्टर की पूरी चेकलिस्ट क्या है? हर स्मार्ट इन्वेस्टर के मन में यही सवाल कौंधता है:
“एक दमदार, मल्टीबैगर स्टॉक खरीदने से पहले आपको किन-किन फैक्टर्स पर गौर करना चाहिए?”
क्या आप शेयर मार्केट में नया पैसा लगाने जा रहे हैं? तो ज़रा रुकिए — क्योंकि एक छोटी सी गलती, आपको बड़ा घाटा दे सकती है! ज़्यादातर लोग शेयर खरीदते समय सिर्फ प्राइस देखते हैं — लेकिन यही सबसे बड़ा जाल है।
सच यह है कि किसी भी स्टॉक को खरीदने से पहले आपको कुछ बेसिक लेकिन दमदार चीजें चेक करनी होती हैं, जो आपको बता सकें:
- क्या कंपनी वाकई मजबूत है?
- क्या ये शेयर लॉन्ग टर्म में रिटर्न देगा?
- और क्या इसमें आपका पैसा सुरक्षित रहेगा?
आपको कंपनी के बिजनेस मॉडल, प्रॉफिट पैटर्न, मैनेजमेंट ट्रस्ट, और सेक्टर ट्रेंड जैसी अहम बातों की भी पड़ताल करनी होती है। वरना छोटी गिरावट में ही आपका निवेश खतरे में पड़ सकता है।
👉 इसी को ध्यान में रखकर हम आपके लिए लाए हैं 2025 की सबसे प्रैक्टिकल और अपडेटेड 17 पॉइंट चेकलिस्ट —
जो न सिर्फ आपकी रिसर्च को शार्प बनाएगी, बल्कि आपको एक confident investor भी बनाएगी। जिसे फॉलो करके आप:
- मजबूत फंडामेंटल वाले स्टॉक्स चुन पाएंगे
- रिस्क को कंट्रोल में रख पाएंगे
- और अपनी इन्वेस्टमेंट रिटर्न्स रॉकेट की तरह बढ़ा सकते हैं
तो चलिए शुरुआत करते हैं — और जान लेते हैं, “2025 में शेयर खरीदने से पहले क्या जांचें? जानिए स्मार्ट इन्वेस्टर की पूरी चेकलिस्ट”
“अगला शेयर खरीदने से पहले किन 17 बातों का ध्यान रखना है?” 🔍📊
Share खरीदने से पहले क्या करना चाहिए?
📈 “आप शेयर नहीं, एक बिज़नेस खरीद रहे हैं!” — समझदारी यहीं से शुरू होती है
जब आप शेयर खरीदने बैठते हैं, तो असल में आप सिर्फ एक स्टॉक नहीं खरीद रहे होते — बल्कि किसी कंपनी का हिस्सा बन रहे होते हैं।
इसलिए, ये समझना बहुत जरूरी है कि आपकी इन्वेस्टमेंट का असली फायदा कंपनी के बिज़नेस की बढ़त पर निर्भर करता है।
अगर आप ट्रेडर हैं, तो आपका नजरिया चार्ट और शॉर्ट-टर्म मूवमेंट पर होगा, लेकिन अगर आप लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर हैं तो आपको कंपनी के फंडामेंटल्स, मैनेजमेंट और मार्केट पोजीशन को समझना बेहद जरूरी है।
इस पोस्ट में, मैं आपको शेयर खरीदने से पहले एक आसान लेकिन पावरफुल चेकलिस्ट दूंगा, जिससे आप समझ सकेंगे कि कौन-से स्टॉक्स आपके लिए सही रहेंगे और कौन-से आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं।
तो अगर आप भी एक समझदार इन्वेस्टर हैं जो सिर्फ शॉर्ट-टर्म ट्रेंड नहीं, बल्कि 5-10 साल का ग्रोथ देखना चाहते हैं —
तो आपको चाहिए एक पक्की Pre-Investment Checklist।
✅ और इस पोस्ट में मैं आपको वही देने वाला हूँ —
एक दमदार 17 पॉइंट की चेकलिस्ट, जो हर शेयर को Multi-bagger या Risky trap में बदलने से पहले बता देगी।
तो चलिए, शुरू करते हैं और जानते हैं वो 17 महत्वपूर्ण बातें जो हर समझदार निवेशक को जाननी चाहिए।
ये भी पढ़े―
- शेयर कैसे खरीदें और बेचे?
- शेयर कब खरीदना और बेचना चाहिए?
शेयर खरीदते समय क्या ध्यान रखें?
( Factors should be consider when buying stock India in Hindi)

यह चेकलिस्ट आपके लिए एक गाइड की तरह काम करेगी, जिससे आप जान पाएंगे कि किसी भी शेयर को खरीदने से पहले किन-किन अहम फैक्टर्स पर ध्यान देना ज़रूरी है। तो चलिए, बिना कोई गलती किए, हर एक पॉइंट को विस्तार से समझते हैं―
📝 1.शेयर खरीदने से पहले इन 17 बातों को जरूर जांचें!
शेयर मार्केट में जल्दबाज़ी नहीं, समझदारी जरूरी है। नीचे दी गई 17-पॉइंट चेकलिस्ट आपकी मदद करेगी एक सही स्टॉक चुनने में — वो भी बिना फंसने के!
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कंपनी का बिजनेस मॉडल
कंपनी क्या बनाती है? उसका प्रोडक्ट या सर्विस कितना यूनिक और स्केलेबल है, यह जानना जरूरी है। -
Revenue और Profit Consistency
कंपनी पिछले 5 सालों से लगातार मुनाफा कमा रही है या नहीं, यह देखें। -
Debt-to-Equity Ratio
ज्यादा कर्ज वाली कंपनी में रिस्क बढ़ जाता है। D/E ratio 1 से नीचे हो तो बेहतर माना जाता है। -
ROE और ROCE
ये दोनों रेशियो बताते हैं कि कंपनी अपने शेयरहोल्डर्स के पैसे का कितना अच्छा इस्तेमाल कर रही है। -
Promoter Holding
प्रमोटर्स के पास ज्यादा हिस्सेदारी होनी चाहिए। लगातार गिरावट अलर्ट का संकेत हो सकती है। -
P/E और P/B Ratio
शेयर का मूल्यांकन सही है या ओवरवैल्यूड/अंडरवैल्यूड, सेक्टर एवरेज के मुकाबले देखें। -
Dividend History
कंपनी नियमित डिविडेंड देती है या नहीं, इससे उसकी वित्तीय स्थिरता का पता चलता है। -
Cash Flow Statement
प्रॉफिट के साथ-साथ कंपनी के पास नकदी का भी होना जरूरी है। -
Future Growth Potential
आने वाले 5-10 सालों में कंपनी के विकास के अवसर और ग्रोथ ड्राइवर्स क्या हैं, यह समझें। -
Peer Comparison
उसी सेक्टर की अन्य कंपनियों के मुकाबले कंपनी का प्रदर्शन कैसा है, उसकी तुलना करें। -
Management की Quality
मैनेजमेंट भरोसेमंद है या नहीं, और क्या वह सही रिपोर्टिंग व गवर्नेंस करता है, इसे देखें। -
Market Trends और Sector Cycle
जिस सेक्टर में कंपनी है, वह अपसाइकिल में है या डाउनसाइकिल में, इसका अध्ययन करें। -
Technical Chart Analysis
अगर आप चार्ट समझते हैं तो सपोर्ट, रेजिस्टेंस और वॉल्यूम की जांच कर सकते हैं। -
FII-DII Activity
विदेशी और घरेलू बड़े निवेशकों की हिस्सेदारी कंपनी में कैसी है, देखें। -
Red Flags और Risk Factors
चल रहे कानूनी मामले, प्लीज्ड शेयर, ऑडिटर की रिपोर्ट में कोई समस्या आदि पर ध्यान दें। -
Recent News और Announcements
मर्जर, अधिग्रहण या अन्य महत्वपूर्ण खबरें जो कंपनी को प्रभावित कर सकती हैं, जानें। -
Valuation vs. Growth Balance
शेयर का मूल्य और भविष्य की वृद्धि क्षमता में संतुलन होना चाहिए।
👇 अब नीचे हर पॉइंट को एक-एक करके विस्तार से समझें…
2.कंपनी के बिजनेस मॉडल को गहराई से समझें

जब भी आप किसी शेयर में निवेश करने की सोचते हैं, तो सबसे पहले खुद से एक सवाल ज़रूर पूछिए:
👉 क्या मुझे इस कंपनी का बिजनेस मॉडल सही से समझ आता है?
बिजनेस मॉडल का मतलब होता है — कंपनी पैसा कैसे कमाती है, कौन से प्रोडक्ट या सर्विस से उसका रेवेन्यू आता है, और उसका कस्टमर बेस कौन है।
क्यों ज़रूरी है ये जानना?
क्योंकि जब कंपनी कोई नया प्रोडक्ट लॉन्च करती है या मार्केट में कोई बड़ी रणनीतिक घोषणा करती है, तो उसका सीधा असर उसके शेयर प्राइस पर पड़ता है — या तो ऊपर जाता है या अचानक गिर जाता है।
💡 अब सोचिए: अगर आपको उस कंपनी का बिजनेस ही समझ नहीं आता, तो आप उसके शेयर में उतार-चढ़ाव को समझ कैसे पाएंगे?
और यही नहीं…
हर तीन महीने में कंपनियाँ क्वार्टरली रिजल्ट घोषित करती हैं, जिसमें उनके सेल्स, प्रॉफिट, लॉस, और ग्रोथ के आंकड़े सामने आते हैं।
इन्हीं आंकड़ों के आधार पर बड़े इन्वेस्टर्स ये तय करते हैं कि शेयर खरीदना है या बेचना।
मेरा जहाँ तक अनुभव (Experience) है, उसके अनुसार यही सलाह दूंगा कि — “अगर आप चाहते हैं कि किसी शेयर का मूवमेंट आपको सरप्राइज़ न करे, तो कंपनी की फाइनेंशियल हेल्थ और बिजनेस मॉडल को समझना आपकी ड्यू डिलिजेंस (Due Dligence) का हिस्सा होना चाहिए”।
📈 उदाहरण के लिए:
अगर कोई कंपनी लगातार हर साल अच्छा प्रॉफिट दिखा रही है और उसका बिजनेस मजबूत है, तो लॉन्ग टर्म में उसके शेयर की कीमत ऊपर जाना तय है।
लेकिन अगर कंपनी की कमाई गिर रही है, या प्रोडक्ट मार्केट में फेल हो रहा है — तो चाहे जितनी ब्रांड वैल्यू हो, उसका शेयर नीचे जाएगा।
- शेयर का प्राइस ऊपर नीचे कैसे होता है?
- शेयर मार्केट कैसे काम करता है?
📊 शेयर खरीदने से पहले कंपनी का बिजनेस मॉडल क्यों समझना ज़रूरी है?
मान लीजिए आपने DMart (Avenue Supermarts) के शेयर में निवेश किया है। आप जानते हैं कि DMart एक सुपरमार्केट चेन है जो ग्रॉसरी और घरेलू सामान बेचती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसका असली बिजनेस मॉडल क्या है?
सिर्फ यह जान लेना कि कोई कंपनी क्या बेचती है, काफी नहीं होता। एक समझदार निवेशक होने के नाते, आपको उस कंपनी का बिजनेस मॉडल डिटेल में समझना चाहिए — यानी कंपनी असल में पैसा कैसे कमाती है, लागत कैसे कंट्रोल करती है, और मार्केट में वह आगे कैसे बढ़ रही है।
🧐 शेयर चुनते समय इन सवालों के जवाब जरूर ढूंढें:
- कंपनी किन-किन प्रोडक्ट्स या सेवाओं से कमाई करती है?
- सबसे ज़्यादा प्रॉफिट मार्जिन किस प्रोडक्ट से आता है?
- क्या कोई प्रोडक्ट इंडस्ट्री में मोनोपॉली या लीडरशिप रखता है?
- सरकार की कौन-सी पॉलिसीज कंपनी को पॉज़िटिव या नेगेटिव तरीके से प्रभावित कर सकती हैं?
- कंपनी की ग्रोथ उसके कॉम्पिटिटर्स के मुकाबले कितनी मजबूत है?
- क्या कंपनी रेगुलर इनकम और ग्रोथ दिखा पा रही है?
- नया प्रोडक्ट लाने में कंपनी को क्या दिक्कतें आती हैं?
- क्या कंपनी का बिजनेस मॉडल आसानी से कॉपी हो सकता है?
- सेक्टर में लीडर कौन है और वो क्यों आगे है?
इन सभी बातों का विश्लेषण किए बिना अगर आप सिर्फ ब्रांड नेम देखकर शेयर खरीदते हैं, तो हो सकता है आप सिर्फ उम्मीद पर निवेश कर रहे हों — जो कि एक खतरनाक रणनीति हो सकती है।
🔍 बिजनेस मॉडल क्या होता है और क्यों ज़रूरी है?
बिजनेस मॉडल का मतलब होता है कि कंपनी प्रॉफिट कैसे बनाती है। इसमें उसकी रेवेन्यू सोर्स, कॉस्ट स्ट्रक्चर, सेल्स चैनल, और कस्टमर वैल्यू प्रपोजिशन शामिल होता है। जब आप किसी कंपनी में निवेश करते हैं, तो असल में आप उसके बिजनेस मॉडल में भरोसा जता रहे होते हैं। इसलिए, कंपनी के पिछले रिजल्ट्स, सेल्स डेटा और सेक्टर ट्रेंड्स को समझना बहुत जरूरी है।
📌 याद रखिए:
“जिस कंपनी में आप पैसा लगा रहे हैं, पहले ये समझिए कि वो कमाती कैसे है!”
- ✅ इससे न सिर्फ आप बेहतर निर्णय ले पाएंगे
- ✅ बल्कि लॉन्ग टर्म में नुकसान से भी बच सकेंगे
👉 अगले टिप में जानेंगे: क्या सिर्फ ब्रांड देखकर शेयर खरीदना सही है या नहीं?
- शेयर मार्केट कैसे सीखे– Step by step
- जानिए आज कौन से शेयर में निवेश करें (5 बेस्ट stocks)
आइये अब next पॉइंट की तरफ बढ़ते हैं―
3.बैलेंस शीट और वित्तीय स्थिति यानी फंडामेंटल्स का ध्यान रखें [Profit Consistency]

📈 शेयर खरीदने से पहले कंपनी की बैलेंस शीट क्यों पढ़ना ज़रूरी है?
जब भी आप किसी कंपनी के शेयर में पैसा लगाने का सोचें, तो सिर्फ उसके नाम या ब्रांड वैल्यू से प्रभावित न हों। कंपनी की बैलेंस शीट और फंडामेंटल एनालिसिस से आपको उसकी असली वित्तीय स्थिति (financial health) का अंदाज़ा लगता है — जो किसी भी निवेश का सबसे मजबूत आधार होता है।
बैलेंस शीट आपको यह बताती है कि:
- कंपनी के पास इस वक्त कितना कैश या नकदी है
- उसके पास कौन-कौन से assets (संपत्तियां) हैं
- कंपनी पर कितनी liabilities (देनदारियां) हैं
- और उसका net worth यानी असली मूल्य क्या है
ये सारी जानकारी आपको यह समझने में मदद करती है कि कंपनी आने वाले समय में अपना बिजनेस कितनी मजबूती से चला पाएगी या नहीं।
👉 इसलिए अगर आप जानना चाहते हैं कि कोई शेयर लॉन्ग टर्म में मुनाफा देगा या घाटा, तो सबसे पहले उसकी फंडामेंटल स्ट्रेंथ और बैलेंस शीट रिपोर्ट को अच्छे से पढ़ें।
📌 याद रखिए:
“बिना बैलेंस शीट देखे शेयर खरीदना, बिना मेडिकल रिपोर्ट देखे इलाज शुरू करने जैसा है!”
- ✅ इससे आप फाइनेंशली मजबूत कंपनियों को पहचान पाएंगे
- ✅ और खराब फंडामेंटल वाली कंपनियों से बच सकेंगे
कंपनी का बैलेंस शीट और फंडामेंटल क्यों चेक करें? मैंने जो सीखा है वो यही है: अगर आप किसी कंपनी का शेयर खरीदने जा रहे हैं, तो उसका बैलेंस शीट ज़रूर देखें! फंडामेंटल एनालिसिस से आप समझ पाएंगे कि कंपनी लाभ कमा रही है या नहीं, और उसका ग्रोथ ट्रेंड कैसा है। जैसे गाड़ी खरीदने से पहले उसका इंजन चेक करते हैं, वैसे ही शेयर खरीदने से पहले ये दोनों चीजें डिटेल में देख लें। इससे आपको पता चल जाएगा कि कंपनी स्ट्रॉन्ग है या सिर्फ़ बातों में!
टिप: अगर बैलेंस शीट में कर्ज़ ज्यादा और कैश कम दिखे, तो समझ जाइए कि यह रिस्की हो सकता है! 💡
(यह टिप मैंने अपने एक्सपीरियंस से लिखी है, आप भी ट्राई करके देखें!)
ये भी पढ़ें―
- एक दिन पहले ही कैसे पता करें किस शेयर का price ऊपर जा सकता है?
- कल निफ्टी बढ़ेगा या गिरेगा ― कैसे पता करें?
4.कंपनी का कर्ज स्तर ज्यादा नहीं होना चाहिए (Debt-to-Equity Ratio)

कर्ज़ और निवेश: क्या कंपनियों का लोन लेना सही है? जानिए इन्वेस्टर्स कैसे बचाएं अपना पैसा!
क्या आप जानते हैं कि ज्यादा कर्ज़ (Debt) किसी कंपनी को डुबोने के लिए काफी है? गूगल पर सर्च करेंगे, तो आपको Lehman Brothers, Yes Bank जैसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जहां अत्यधिक कर्ज़ ने कंपनियों को दिवालिया कर दिया और इन्वेस्टर्स का पैसा डूब गया। पर सवाल यह है: क्या किसी कंपनी के लिए लोन लेना हमेशा गलत है?
कर्ज़ लेना बुरा नहीं, गलत इस्तेमाल खतरनाक है!
Debt या कर्ज़ बुरी बात नहीं। असल मुद्दा है “कर्ज़ का सही इस्तेमाल”। अगर कोई कंपनी प्रोडक्ट डेवलपमेंट या इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए लोन लेती है और उसे सही जगह इन्वेस्ट करती है, तो यह ग्रोथ का टूल बन सकता है। लेकिन, अगर वही पैसा मार्केटिंग, बोनस या गैर-जरूरी खर्चों में उड़ा दिया जाए, तो यह इन्वेस्टर्स के लिए हाई रिस्क बन जाता है।
कैसे पहचानें कर्ज़ का सही इस्तेमाल?
- बैलेंस शीट चेक करें: कंपनी का रिजर्व और सरप्लस (Reserve & Surplus) देखें। अगर यह हिस्सा मजबूत है, तो कंपनी कर्ज़ चुकाने में सक्षम है।
- लोन का उद्देश्य: कर्ज़ किस लिए लिया गया? अगर प्रोजेक्ट से रेवेन्यू जनरेट होगा, तो यह सही निर्णय है।
- डेट-टू-इक्विटी रेश्यो: यह रेश्यो 1:1 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
Check this Video: Debt-to-Equity Ratio Explained For Stock Market Beginners | ThetaOptionTrading YouTube Channel
📌 याद रखिए:
“बिना बैलेंस शीट देखे शेयर खरीदना, बिना मेडिकल रिपोर्ट देखे इलाज शुरू करने जैसा है!”
- ✅ इससे आप फाइनेंशली मजबूत कंपनियों को पहचान पाएंगे
- ✅ और खराब फंडामेंटल वाली कंपनियों से बच सकेंगे
मेरी सलाह: “ब्लाइंड इन्वेस्टमेंट” [Blind Investment] से बचें!
किसी के कहने पर शेयर न खरीदें। कंपनी की बैलेंस शीट, कैश फ्लो और डेट स्ट्रक्चर (Debt Structure) को गहराई से समझें। अगर आपको लगता है कि कर्ज़ का इस्तेमाल रेवेन्यू बढ़ाने के लिए हो रहा है, तो ही इन्वेस्ट करें।
क्या आपने आज तक अपने पोर्टफोलियो की Debt Analysis की है? नहीं? तो अभी शुरू करें – क्योंकि एक स्मार्ट इन्वेस्टर वही है जो रिस्क को समझकर पैसा लगाता है!
5.कंपनी की स्थापना और इतिहास जरूर जांचें
“क्या पुरानी कंपनियों में इन्वेस्ट करना ज्यादा सुरक्षित है? जानिए अनुभव का फायदा और निवेश का सही तरीका!“
क्या आपने कभी सोचा है कि शेयर मार्केट में “पुरानी गाड़ी, पक्का रास्ता” वाली कहावत क्यों चरितार्थ होती है? अगर आप टाटा, बजाज, या रिलायंस जैसे दिग्गज समूहों की कंपनियों के शेयरों पर नज़र डालें, तो पाएंगे कि इनमें निवेश करने वालों को लंबे समय में स्टेबल रिटर्न मिलने की संभावना ज्यादा होती है।
ऐसा क्यों? क्योंकि ये कंपनियाँ दशकों के मार्केट एक्सपीरियंस, आर्थिक मंदी, प्रतिस्पर्धा और ग्राहकों के बदलते ट्रेंड्स से लड़कर “सर्वाइवल स्किल्स” सीख चुकी हैं।
अनुभव ही क्यों मायने रखता है?
किसी भी कंपनी का मार्केट में लंबा ट्रैक रिकॉर्ड उसकी सबसे बड़ी ताकत होता है। उदाहरण के लिए, बजाज ग्रुप 1945 से और टाटा ग्रुप 1868 से भारतीय बाज़ार में सक्रिय है। इन्होंने 1991 के आर्थिक उदारीकरण, 2008 की ग्लोबल क्राइसिस, या COVID-19 जैसे झटकों को झेला है, लेकिन अपने रिस्क मैनेजमेंट और इनोवेशन से न सिर्फ बचीं, बल्कि मजबूत भी हुईं।
इसके विपरीत, एक नई कंपनी के पास अक्सर लॉन्ग-टर्म विज़न की कमी होती है। वह मार्केट के उतार-चढ़ाव, फंडिंग की चुनौतियों, या ऑपरेशनल गलतियों से निपटने का अनुभव नहीं रखती।
📊 पुरानी vs नई कंपनियां: इन्वेस्टर को क्या चुनना चाहिए?
⚖️ तुलना बिंदु | नई कंपनियां | पुरानी कंपनियां |
---|---|---|
📈 ग्रोथ पोटेंशियल | हाई ग्रोथ का वादा, लेकिन अनुभव की कमी | स्थिर ग्रोथ, लेकिन कम रिस्क |
💰 फंडिंग | वेंचर कैपिटल/कर्ज़ पर निर्भर — जोखिम अधिक | रेवेन्यू से ऑपरेशन — फाइनेंशली मजबूत |
🤝 ब्रांड ट्रस्ट | कस्टमर ट्रस्ट बनाना अभी बाकी | मजबूत ब्रांड वैल्यू और लॉयल कस्टमर बेस |
📜 सरकारी नीतियों के साथ तालमेल | अनुभव की कमी — पॉलिसी रिस्क ज्यादा | सरकारी नीतियों के अनुरूप चलने का अनुभव |
क्या सिर्फ “पुरानापन” काफी है? नहीं! कुछ पुरानी कंपनियाँ (जैसे विजय माल्या की किंगफिशर) गलत मैनेजमेंट या ज्यादा कर्ज़ की वजह से फेल हो गईं। इसलिए, केवल “उम्र” नहीं, बल्कि “फंडामेंटल्स” देखें:
6. कंपनी के महत्वपूर्ण वित्तीय अनुपात अवश्य देखें [P/E और P/B Ratio]

मैंने शुरुआत में सिर्फ़ PE Ratio देखकर शेयर खरीद लिए थे, लेकिन बाद में पता चला कि Debt-to-Equity Ratio 3 था (यानी कंपनी पर कर्ज़ बहुत ज़्यादा!) और शेयर गिर गया। 😓 इसलिए अब मैं कभी एक रेश्यो पर निर्भर नहीं रहता।
जब भी मैं कोई शेयर चुनता हूं, तो इन 5 फाइनेंशियल रेश्यो को ज़रूर चेक करता हूं:
मैं किसी कंपनी में इन्वेस्ट करने की सोचता हूँ, तो सबसे पहले उसके फाइनेंशियल रेश्यो देखता हूँ। जैसे PE Ratio ये बताता है कि शेयर महंगा है या सस्ता। Debt to Equity Ratio से समझ आता है कि कंपनी पर कितना कर्ज है। इसी तरह EPS, Book Value, और PB Ratio जैसी चीज़ें भी कंपनी की असली हालत बताती हैं।
📊 ज़रूरी फाइनेंशियल रेश्यो (शेयर खरीदने से पहले)
-
1️⃣ PE Ratio (प्राइस टू अर्निंग): बताता है शेयर “महंगा” है या “सस्ता”।
उदाहरण: PE 25 मतलब ₹1 के प्रॉफिट के लिए ₹25 देना। -
2️⃣ Debt-to-Equity Ratio: कंपनी पर कितना कर्ज़ है।
1 से ज़्यादा मतलब रिस्क ज़्यादा। -
3️⃣ ROE (Return on Equity): निवेश पर रिटर्न कितना मिल रहा है।
अगर 15%+ है तो अच्छा परफॉर्म कर रही है। -
4️⃣ EPS (Earning Per Share): हर शेयर पर कंपनी कितना कमा रही है।
EPS बढ़े = हेल्दी ग्रोथ। -
5️⃣ PB Ratio (प्राइस टू बुक वैल्यू): शेयर की असली वैल्यू के मुकाबले मार्केट वैल्यू।
अगर 1.5 से कम है = अंडरवैल्यूड हो सकता है।
मेरी सीख: ये रेश्यो आपको बताते हैं कि कंपनी “दिखावे” में है या “असली मुनाफ़ा” कमा रही है। जैसे दुकान से सामान खरीदने से पहले उसकी क्वालिटी चेक करते हैं, वैसे ही शेयर खरीदने से पहले ये रेश्यो देख लें!
ये सब रेश्यो मिलकर ये तय करते हैं कि कंपनी का बिजनेस वाकई मजबूत है या सिर्फ दिखावे वाला है। इसलिए मेरी सलाह है – किसी भी शेयर को खरीदने से पहले एक बार ये सारे फाइनेंशियल रेश्यो ज़रूर देखिए। ये छोटी सी आदत आपको बड़े नुकसान से बचा सकती है।
⚠️ सावधानी: अगर Debt-to-Equity 2 से ज़्यादा है, तो समझ जाइए कंपनी का कर्ज़ डूबने का खतरा है!
💡 Final Thought:
फंडामेंटल Ratios आपकी “फाइनेंशियल मैग्नीफाइंग ग्लास” हैं। ये कंपनी के अंदर का सच दिखाते हैं। जैसे प्याज़ के छिलके उतारकर अंदर देखते हैं, वैसे ही ये Ratios आपको कंपनी की असली तस्वीर दिखाएंगे। हैवी डिस्काउंट के चक्कर में न फंसें, “क्वालिटी” चेक करके ही खरीदें!
(मेरी तरह आप भी शुरुआत में गलतियां करेंगे, लेकिन यही सीखकर आप एक स्मार्ट इन्वेस्टर बन जाएंगे!)
7. कंपनी के मैनेजमेंट की विश्वसनीयता जरूर परखें [Management Quality]

मैंने अपने निवेश के सफर में सीखा: “अच्छा बिजनेस + खराब मैनेजमेंट = नुकसान!”
शेयर खरीदने से पहले मैं सबसे पहले ये देखता हूँ कि कंपनी को चला कौन रहा है। अगर लीडरशिप मजबूत है, तो भविष्य में बिज़नेस भी ठीक चलेगा। जैसे मैंने Nykaa या Zerodha जैसी कंपनियों में देखा — इनके फाउंडर्स ने कंपनी को ईमानदारी और क्लियर विज़न के साथ आगे बढ़ाया।
वहीं कुछ कंपनियाँ ऐसी भी होती हैं जिनके मैनेजमेंट का ट्रैक रिकॉर्ड साफ़ नहीं होता। एक बार मैंने एक स्मॉल-कैप कंपनी के शानदार रेश्यो देखकर इन्वेस्ट किया था, लेकिन बाद में पता चला कि उनके प्रमोटर्स पर पहले से ही कुछ केस चल रहे थे।
नतीजा? कुछ ही महीनों में शेयर क्रैश हो गया। तब से मैंने सीखा — फंडामेंटल और बैलेंस शीट के साथ-साथ मैनेजमेंट चेक करना सबसे जरूरी है।
कई बार ऐसा होता है कि कंपनी की बैलेंस शीट, फंडामेंटल और फाइनेंशियल रेश्यो सब कुछ बहुत अच्छा दिखता है। लोग इन्हीं चीजों को देखकर उसमें पैसा लगा देते हैं। लेकिन अगर आपने मैनेजमेंट को नजरअंदाज़ किया, तो वही सबसे बड़ी गलती बन जाती है।
कुछ साल पहले एक लिस्टेड कंपनी CG Power and Industrial Solutions Case में ऐसा ही मामला हुआ था। सब कुछ अच्छा लग रहा था, लेकिन बाद में पता चला कि कंपनी के टॉप मैनेजमेंट ने फाइनेंशियल गड़बड़ियां की थीं। इसके चलते शेयर प्राइस क्रैश हो गया और निवेशकों को भारी नुकसान हुआ।
इसलिए याद रखिए — कंपनी का फाइनेंशियल स्ट्रॉन्ग होना ही काफी नहीं है। जिनके हाथ में कंपनी है, वो लोग भरोसेमंद और ईमानदार होने चाहिए।
🧠 कैसे करें मैनेजमेंट एनालिसिस? (मेरा तरीका)
🔍 Google News | “कंपनी का नाम + scam/fraud” सर्च करें। अगर निगेटिव खबरें मिलें तो रिस्क न लें। |
👤 LinkedIn प्रोफाइल | CEO या प्रमोटर की एजुकेशन और अनुभव जरूर जांचें। |
🚨 इनसाइडर ट्रेडिंग | अगर प्रमोटर लगातार शेयर बेच रहे हैं तो यह चेतावनी का संकेत हो सकता है। |
📘 Annual Report | “Management Discussion” सेक्शन पढ़ें – इससे कंपनी की प्लानिंग और सोच समझ में आती है। |
💡 आसान टिप: कंपनी के Annual Report के “Management Discussion” सेक्शन को पढ़ें। अगर वे भविष्य की प्लानिंग क्लियर बताएं, तो भरोसा बढ़ता है!
(याद रखें: अंबानी-टाटा जैसे नामों को ब्लाइंडली फॉलो न करें, खुद रिसर्च करें!)
8. कंपनी के सेक्टर और प्रतियोगी कंपनियों से तुलना जरूर करें [Peer Comparison]
जब आप किसी कंपनी में निवेश करने की सोचें, तो पहले उस इंडस्ट्री को थोड़ा समझ लेना जरूरी है। जैसे — उस सेक्टर में लीडर कंपनी कौन है? और आपकी चुनी कंपनी का उसके मुकाबले क्या स्टैंड है?
एक और जरूरी बात ये देखनी चाहिए कि क्या उस कंपनी के पास ऐसा कोई “कंपटीशन एडवांटेज” है जो दूसरों के पास नहीं हो सकता।
उदाहरण के तौर पर — डाबर का हर्बल प्रोडक्ट्स में ब्रांड ट्रस्ट बहुत पुराना है। चाहे कोई भी नया ब्रांड आ जाए, लेकिन गांव से लेकर शहर तक लोग डाबर च्यवनप्राश या हनी जैसी चीजें ही चुनते हैं।
📊 कंपनी का सेक्टर और कंपटीशन एडवांटेज कैसे जांचें? (मेरी नजर से)
शेयर खरीदने से पहले सिर्फ कंपनी नहीं, उसका सेक्टर भी समझना बहुत जरूरी है — कई बार कंपनी बढ़िया होती है लेकिन उसका सेक्टर ही गिर रहा होता है।
पॉइंट | क्या देखें? |
---|---|
📈 सेक्टर ग्रोथ | क्या उस सेक्टर में भविष्य में ग्रोथ की संभावना है? |
🏆 लीडर कौन? | उस इंडस्ट्री में सबसे भरोसेमंद या बड़ी कंपनी कौन सी है? |
🛡️ कंपटीशन एडवांटेज | क्या उस कंपनी के पास कोई ऐसा एडवांटेज है जो और कंपनियां कॉपी नहीं कर सकती? |
🔍 कुछ हटके उदाहरण:
- Divi’s Labs: API मैन्युफैक्चरिंग में भरोसेमंद और ग्लोबल ब्रांड – रेपुटेशन ही Moat है।
- IRFC: सरकारी मोनोपोली – केवल यही कंपनी रेलवे प्रोजेक्ट्स को फंड करती है।
- Bajaj Finance: इतना पर्सनल डाटा और एनालिटिक्स किसी के पास नहीं, यही इनकी ताकत है।
💡 मेरी सलाह: अगर किसी कंपनी के पास ऐसा एडवांटेज है जिसे कोई और कॉपी नहीं कर सकता, तो वह शेयर लॉन्ग टर्म में जबरदस्त रिटर्न दे सकता है। हमेशा कंपनी के साथ-साथ उसके सेक्टर और कंपटीशन को जरूर जांचो।
कैसे पता करें कंपनी का MOAT? (मेरा तरीका)
- Step 1: सेक्टर की टॉप 3 कंपनियों की लिस्ट बनाएं (Moneycontrol या Groww पर देखें)।
- Step 2: गूगल पर सर्च करें: “कंपनी का नाम + competitive advantage”।
- Step 3: अगर कंपनी की यूनिक खूबी नजर आए (जैसे Asian Paints का 7 लाख रिटेलर नेटवर्क), तो समझ जाइए यह MOAT है!
💡 स्मार्ट टिप: अगर सेक्टर में 10+ कंपनियां भिड़ रही हैं (जैसे फास्ट फैशन), तो उसमें निवेश से बचें। लीडर के अलावा बाकी जल्दी फेल हो जाते हैं!
(याद रखें: अगर कंपनी की कोई “सुपरपावर” नहीं है, तो वह लंबे समय तक मार्केट में नहीं टिकेगी!)
9. निवेश के लिए चुनें इनोवेशन और ग्रोथ से भरपूर कंपनी [Future Growth Potential]
🚀 इनोवेशन और ग्रोथ वाली कंपनियों में ही निवेश क्यों करें? (मेरे अनुभव से)
शेयर बाजार में मेरे एक सिंपल से रूल है — जो कंपनी समय के साथ खुद को बदलती है, वही लंबे समय तक टिकती है।
जो बिज़नेस बस एक ही तरीके से सालों तक चलते रहते हैं, उनमें गिरने का खतरा सबसे ज्यादा होता है।
मैंने खुद देखा है कि कई बड़ी कंपनियाँ जो कभी मार्केट लीडर थीं, आज नाम भी नहीं लिया जाता।
क्यों? सिर्फ एक वजह — उन्होंने इनोवेशन को नजरअंदाज़ कर दिया।
कुछ रियल उदाहरण:
- Kodak Camera: कभी हर घर में कैमरा यही था, लेकिन डिजिटल कैमरा और मोबाइल कैमरा का दौर आया — और कोडक ने बदलाव नहीं किया… नतीजा? कंपनी खत्म।
- Bajaj Chetak स्कूटर: एक समय में हर गली में यही स्कूटर दिखता था। लेकिन जब स्कूटी और ऑटोमेटिक गाड़ियां आईं, चेतक वहीं रह गया… जबकि Hero और TVS ने इनोवेशन करके आज भी बाजार पकड़ा हुआ है।
- Atlas Cycle: बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी इसे इस्तेमाल करते थे, लेकिन कंपनी समय के साथ नहीं बदली, और धीरे-धीरे मार्केट से गायब हो गई।
- HMT Watches: जो कभी हर कलाई की शान थी, आज सिर्फ म्यूज़ियम में मिलती है। जबकि उसी जगह Titan ने टेक्नोलॉजी और स्टाइल को मिलाकर मार्केट लीडरशिप ले ली — और उसमें राकेश झुनझुनवाला ने भी भारी इन्वेस्टमेंट किया।
अब देखिए Apple को — वारेन बफे जैसे लीजेंड ने इसमें इन्वेस्टमेंट क्यों किया? क्योंकि Apple हर साल कुछ नया लेकर आता है। उनकी इनोवेशन की वजह से ही कंपनी का ग्रोथ रुकता नहीं।
10. जानिए कंपनी की भविष्य की योजनाएं और ग्रोथ स्ट्रैटेजी
मेरे हिसाब से जब भी मैं किसी कंपनी में निवेश करने की सोचता हूँ, तो सबसे पहले उसकी भविष्य की योजनाओं (Future Plans) पर नजर जरूर डालता हूँ। इससे अंदाज़ा लग जाता है कि कंपनी आने वाले सालों में किस दिशा में जा रही है और उसमें ग्रोथ का कितना स्कोप है।
मैं ये जरूर चेक करता हूँ कि कंपनी आने वाले 5–10 सालों में क्या करने वाली है। मतलब उसका फ्यूचर प्लान और विज़न क्या है?
एक बार मैंने Adani Green पर नज़र डाली — उस वक्त शेयर उतना चर्चित नहीं था, लेकिन जैसे ही मुझे पता चला कि कंपनी का फोकस ग्रीन एनर्जी और सोलर प्रोजेक्ट्स पर है, तो मैंने थोड़ा रिसर्च किया और छोटा-सा इन्वेस्टमेंट कर दिया। कुछ ही सालों में उसका रिटर्न शानदार निकला — सिर्फ इसलिए क्योंकि मैंने उसका फ्यूचर देखा था, उसका प्रेज़ेंट नहीं।
इसी तरह मैंने एक और कंपनी देखी थी जो पुराने बिज़नेस मॉडल पर ही टिकी हुई थी — ना कोई टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट, ना कोई इनोवेशन। उसका शेयर कई सालों तक एक ही जगह अटका रहा, और जो इन्वेस्टर्स थे, उन्हें कोई खास ग्रोथ नहीं मिली।
👉 इसलिए अब मेरा सिंपल रूल है:
“शेयर खरीदने से पहले कंपनी का फ्यूचर जरूर देखो — वह किस दिशा में जा रही है।”
अगर कंपनी आने वाले ट्रेंड्स जैसे कि AI, क्लीन एनर्जी, डिजिटल सर्विसेज, EVs जैसे क्षेत्रों में काम कर रही है, तो उसमें लॉन्ग टर्म ग्रोथ का दम जरूर होगा।
🔍 Quick Checklist (मैं खुद इसको फॉलो करता हूँ):
- क्या कंपनी आने वाले सालों में किसी हाई-डिमांड सेक्टर में एंटर कर रही है?
- क्या उनके पास कोई लॉन्ग टर्म इनोवेशन या टेक्नोलॉजी रोडमैप है?
- क्या मैनेजमेंट क्लियर विज़न के साथ काम कर रहा है?
🧠 Future Thinking = Smart Investing
जो निवेशक सिर्फ आज देखते हैं, वो उतना ही पाते हैं।
लेकिन जो कल की सोचकर आज इन्वेस्ट करते हैं, वही असली ग्रोथ पकड़ते हैं।
- भविष्य में बढ़ने वाले शेयर
- भविष्य में बढ़ने वाले शेयर 2025 तक के लिए.
11. शेयरहोल्डिंग पैटर्न को ध्यान से परखें [Promoter Holding]
जब भी मैं किसी नए शेयर में निवेश करने की सोचता हूँ, तो सबसे पहले मैं उसका शेयर होल्डिंग पैटर्न जरूर चेक करता हूँ। मतलब यह देखता हूँ कि उस कंपनी में किन-किन लोगों ने पैसा लगाया है – जैसे कि Promoters, Mutual Funds (DII) और Foreign Investors (FII)।
मेरे अनुभव से, अगर आप बिलकुल भी रिस्क नहीं लेना चाहते तो चेक करे कि किसी कंपनी में Promoters की होल्डिंग कम से कम 65% या उससे ज्यादा हो, तो यह एक अच्छा संकेत होता है। इसका मतलब है कि कंपनी के मालिक खुद अपने बिजनेस पर भरोसा रखते हैं और उसमें लंबी अवधि के लिए जुड़े हुए हैं।
अगर आप रिस्क टेकर है तो होल्डिंग को अपने रिस्क (Risk appetite) के अनुसार घटा सकते हैं पर फिर भी प्रमोटर्स की हिस्सेदारी 50%+ होनी ही चाहिए |
3 ज़रूरी बातें शेयर होल्डिंग में:
- प्रमोटर्स की हिस्सेदारी (50%+ होनी चाहिए):
- जैसे टाटा मोटर्स में टाटा ग्रुप के पास 46% शेयर हैं। यह भरोसा देता है कि वे बिजनेस को लेकर गंभीर हैं।
- रेड फ्लैग: अगर प्रमोटर्स शेयर बेच रहे हैं, तो तुरंत बाहर निकलें!
- DII (Mutual Funds) और FII (विदेशी निवेशक):
- अगर HDFC MF या FIIs जैसे बड़े नाम कंपनी में पैसा लगा रहे हैं, तो यह पॉजिटिव सिग्नल है।
- उदाहरण: ASIAN PAINTS में 20%+ FII होल्डिंग है, जो लंबे समय से ग्रोथ का संकेत है।
- Retail Investors (आम लोग):
- अगर Retail होल्डिंग 20% से ज्यादा है, तो शेयर में ज्यादा उतार-चढ़ाव आएगा।
इसके साथ ही, मैं यह भी देखता हूँ कि उस शेयर में Mutual Funds और Foreign Investors का कितना पैसा लगा है। क्योंकि बड़े संस्थागत निवेशक बिना रिसर्च किसी कंपनी में पैसा नहीं लगाते। अगर उन्होंने शेयर खरीदा है, तो यकीन मानिए, उस कंपनी में कुछ खास जरूर है।
इसलिए शेयर खरीदने से पहले शेयर होल्डिंग जरूर चेक करें – ये एक स्मार्ट निवेशक की पहली आदत होनी चाहिए। ✅
💡 मेरी राय: Screener.in पर जाकर “Shareholding Pattern” चेक करें। अगर प्रमोटर्स की होल्डिंग कम हो रही है और FII/DII बढ़ रही है, तो समझ जाएं कंपनी में कुछ गड़बड़ है!
(याद रखें: प्रमोटर्स का पैसा कंपनी में लगा हो, तो वे आपकी तरह मुनाफ़े के लिए मेहनत करेंगे!)
12. आखिर कंपनी का आकार कितना बड़ा है?

मैंने अपने शुरुआती दिनों में सोचा था: “छोटी कंपनियों के शेयर सस्ते हैं, तो मुनाफा भी ज़्यादा होगा!” लेकिन 2020 के मार्केट क्रैश ने मुझे सिखाया कि “सस्ता महंगा पड़ सकता है!” 😓 देखिए, मार्केट कैप के हिसाब से कंपनियां चार तरह की होती हैं:
Cap Category | Market Cap Range (INR) | विवरण / उदाहरण |
---|---|---|
Micro Cap | 500 करोड़ से कम | बहुत छोटी कंपनियाँ |
Small Cap | 500 करोड़ – 30,000 करोड़ | छोटी लेकिन ग्रोथ की संभावना वाली कंपनियाँ |
Mid Cap | 30,000 करोड़ – 1 लाख करोड़ | मझोली कंपनियाँ |
Large Cap | 1 लाख करोड़ से अधिक | बड़ी और स्थिर कंपनियाँ – जैसे Reliance, TCS, Dmart (निफ्टी 50 की कंपनियां) |
- “स्मॉल कैप = बाइक, लार्ज कैप = ट्रेन!” बाइक तेज दौड़ती है, मगर हादसा हो तो नुकसान ज्यादा। ट्रेन धीमी चले, मगर पटरी से उतरने का डर कम।
- नए इन्वेस्टर्स के लिए सलाह: पोर्टफोलियो का 60% लार्ज कैप में रखें। मैंने यही फॉर्मूला अपनाया और मेरा पोर्टफोलियो 2x हुआ!
छोटी कंपनियों में रिटर्न बहुत अच्छा मिल सकता है, लेकिन रिस्क भी हाई होता है। खासकर जब मार्केट गिरता है, तो यही कंपनियाँ सबसे पहले फिसलती हैं। कुछ तो इतने गिर जाते हैं कि वापस उठ ही नहीं पाते।
इसीलिए, किसी भी शेयर में पैसा लगाने से पहले उसकी Market Cap जरूर समझिए। इससे आपको पता चलेगा कि उस स्टॉक में कितना रिस्क और कितना भरोसा है।
13. क्या कंपनी नियमित रूप से डिविडेंड देती है? [Dividend History]
शेयर बाजार में हर कंपनी डिविडेंड नहीं देती। सिर्फ कुछ ही कंपनियां होती हैं जो अपने मुनाफे का एक छोटा हिस्सा शेयरहोल्डर्स को बांटती हैं, इसे ही डिविडेंड कहा जाता है।
अब सोचिए, क्या आपको लगता है कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन की सैलरी सबसे ज्यादा होती होगी?
असलियत में, उनकी सैलरी लिमिटेड होती है। लेकिन फिर भी वे अरबों में कमाई करते हैं। क्यों?
क्योंकि टाटा ग्रुप की कई कंपनियों में उनकी हिस्सेदारी है, जिससे उन्हें हर साल करोड़ों का डिविडेंड मिलता है।
इससे हमें ये समझ आता है कि कोई भी बड़ा व्यक्ति सिर्फ सैलरी से बड़ा नहीं बनता — असली संपत्ति तो बिजनेस ओनरशिप और डिविडेंड से बनती है।
डिविडेंड के बारे में विस्तार से पढ़ना चाहते हैं तो हमने आपके लिए यहाँ इसको बहुत विस्तार से बताया है इस पोस्ट को पढ़े ―
- डिविडेंड क्या होता है और कैसे मिलता है? डिविडेंड की पूरी जानकारी (विस्तार से)
अब सवाल ये है कि क्या हमें सिर्फ डिविडेंड देने वाली कंपनियों में ही निवेश करना चाहिए?
इसका जवाब थोड़ा बैलेंस चाहिए।
कुछ ग्रोथ कंपनियां जैसे Zomato या Nykaa फिलहाल डिविडेंड नहीं देतीं, क्योंकि वो सारा पैसा अपने बिज़नेस को और आगे बढ़ाने में लगाती हैं। इससे उनके शेयर प्राइस में लंबे समय में काफी ग्रोथ देखने को मिलती है।
वहीं कुछ कंपनियां जैसे ONGC या NTPC अच्छा डिविडेंड देती हैं, लेकिन उनके शेयर की कीमत ज्यादा तेज़ी से नहीं बढ़ती।
इसलिए अगर आप डिविडेंड पर फोकस कर रहे हैं, तो सिर्फ ये मत देखिए कि कंपनी कितना डिविडेंड देती है — ये भी देखिए कि उसका बिजनेस कितना आगे बढ़ रहा है और उसका भविष्य कैसा दिख रहा है
✅ Pro Tip:
हमेशा कंपनी की डिविडेंड हिस्ट्री + फ्यूचर ग्रोथ दोनों को ध्यान में रखकर ही निवेश करें। यही बैलेंस आपको बेहतर रिटर्न दिला सकता है।
कब चुनें डिविडेंड स्टॉक्स? (मेरा फॉर्मूला)
- अगर आप रिटायरमेंट के नजदीक हैं और महीने की इनकम चाहिए।
- कंपनी की डिविडेंड यील्ड 3%+ हो और प्राइस ग्रोथ भी सालाना 10%+ हो।
⚠️ चेतावनी: अगर कंपनी कर्ज़ में डूबी है और फिर भी डिविडेंड दे रही है (जैसे Vodafone Idea), तो यह रेड फ्लैग है
14.FII और DII की निवेश गतिविधियों को समझना क्यों ज़रूरी है? [FII-DII Activity]

जब मैंने शुरुआत की थी, तो मैं सिर्फ कंपनी के प्रोडक्ट्स, प्रोफिट और चार्ट्स देखकर शेयर खरीद लेता था। लेकिन धीरे-धीरे एक चीज़ समझ में आई — अगर बड़े प्लेयर्स यानी FII और DII किसी स्टॉक में भारी पैसा लगा रहे हैं, तो FII-DII Activity में कुछ तो खास बात होती है ।
FII (Foreign Institutional Investors) और DII (Domestic Institutional Investors) वो इन्वेस्टर्स हैं जो करोड़ों-अरबों का निवेश करते हैं। ये अगर किसी स्टॉक में लगातार खरीदारी कर रहे हैं, तो समझ लीजिए वो शेयर सिर्फ आज नहीं, आने वाले सालों में भी दम दिखा सकता है। वहीं, अगर ये बेच रहे हैं, तो यह एक सावधान रहने का सिग्नल भी हो सकता है।
इसलिए, “शेयर खरीदने से पहले क्या जांचें?” वाली चेकलिस्ट में FII-DII की एक्टिविटी एक अहम पॉइंट है। आप NSE या BSE की वेबसाइट से किसी स्टॉक की होल्डिंग रिपोर्ट देख सकते हैं कि किस तिमाही में FII-DII ने कितना निवेश किया है।
✅ Smart Tip:
FII-DII की खरीदारी और बिक्री का ट्रेंड देखकर आप यह समझ सकते हैं कि “बड़े खिलाड़ी” कहां दांव लगा रहे हैं — और वहीं से मिलती है आपको भी एक क्लियर दिशा।
15. हाल की खबरें और घोषणाएं [Recent News & Announcements]
जब भी मैं किसी शेयर को खरीदने की सोचता हूँ, तो सबसे पहले उस कंपनी से जुड़ी लेटेस्ट न्यूज और अनाउंसमेंट्स चेक करता हूँ। ऐसा इसलिए क्योंकि एक छोटी-सी खबर भी किसी शेयर के दाम को ऊपर या नीचे झटका दे सकती है।
माल लीजिए, कंपनी ने हाल ही में किसी नए प्रोजेक्ट की घोषणा की है या फंड रेज़ करने वाली है — तो ये संकेत है कि कंपनी आगे बढ़ रही है। वहीं, अगर कोई कानूनी मामला चल रहा है या प्रमोटर ने हिस्सेदारी बेची है, तो वो रेड सिग्नल हो सकता है।
आप Moneycontrol, NSE India या कंपनी के IR पेज पर जाकर इन अपडेट्स को मिनटों में चेक कर सकते हैं।
💡 मेरा अनुभव: एक बार मैंने सिर्फ एक पॉजिटिव अनाउंसमेंट देखकर स्टॉक खरीदा था और 6 महीने में 40% का रिटर्न मिला। इसलिए ये स्टेप कभी न छोड़ें!
16. Technical चार्ट एनालिसिस: निवेश से पहले क्यों करें जांच?
सच कहूं तो पहले मैं सिर्फ कंपनी की फंडामेंटल रिपोर्ट देखकर ही शेयर खरीद लेता था, लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि सब कुछ अच्छा होने के बावजूद शेयर नीचे चला गया। तभी मैंने टेक्निकल चार्ट एनालिसिस की ताकत समझी।
अब मैं किसी शेयर में निवेश की सोचता हूँ, तो सिर्फ कंपनी की फंडामेंटल्स ही नहीं, उसके Technical चार्ट भी जरूर देखता हूँ। टेक्निकल एनालिसिस दरअसल हमें ये समझने में मदद करता है कि अभी स्टॉक की मूवमेंट कैसी चल रही है – यानी लोग खरीद रहे हैं या बेच रहे हैं।
मैंने जो सीखा: “फंडामेंटल बताता है क्या खरीदें, टेक्निकल बताता है कब खरीदें!” टेक्निकल एनालिसिस आपको शेयर की प्राइस ट्रेंड और मार्केट की भावना समझने में मदद करती है। जैसे:
- सपोर्ट/रेजिस्टेंस: अगर टाटा मोटर्स ₹600 के आसपास बार-बार रुक रहा है, तो यह एक सपोर्ट लेवल है।
- इंडिकेटर्स: RSI (70 से ऊपर = ओवरबॉट), 200-DMA (लॉन्ग-टर्म ट्रेंड)।
- वॉल्यूम: कीमत बढ़ने के साथ वॉल्यूम बढ़े तो ट्रेंड असली है!
💡 टिप: टेक्निकल एनालिसिस 100% सही नहीं, लेकिन रिस्क कम करती है। शेयर खरीदने से पहले 1 साल का चार्ट ज़रूर देखें!
17. वैल्यूएशन और ग्रोथ का संतुलन: निवेश से पहले क्या समझें?

जब भी कोई शेयर सस्ता लगता है, हम तुरंत उसे खरीदने की सोचने लगते हैं। लेकिन सिर्फ कम प्राइस वाला शेयर खरीदना हमेशा फायदेमंद नहीं होता। असली बात होती है वैल्यूएशन और ग्रोथ के बीच का संतुलन समझना। अगर कोई कंपनी तेजी से ग्रो कर रही है, तो थोड़े महंगे वैल्यूएशन पर भी वह लंबे समय में अच्छा रिटर्न दे सकती है।
मैंने खुद कई बार ऐसा देखा है कि कुछ स्टॉक्स देखने में महंगे लगे, लेकिन उनकी ग्रोथ जबरदस्त थी – और उन्होंने बाद में दमदार रिटर्न दिया। वहीं कुछ ‘सस्ते’ स्टॉक्स ने कई साल तक कुछ खास नहीं किया।
इसलिए निवेश से पहले Price to Earnings (P/E), Price to Book (P/B) और कंपनी की फ्यूचर ग्रोथ की संभावनाओं को जरूर समझें। ये बैलेंस आपको एक स्मार्ट इन्वेस्टर बनाता है – जो सिर्फ प्राइस नहीं, असली वैल्यू देखता है।
📌 वैल्यूएशन vs ग्रोथ: “कीमत या पोटेंशियल?” (मेरा एक्सपीरियंस!)
मैंने एक बार एक कंपनी में निवेश किया जिसका P/E Ratio 80 था (जबकि इंडस्ट्री एवरेज 25!), लेकिन सोचा – “ग्रोथ तो जबरदस्त है।” पर 6 महीने में ही शेयर 40% गिर गया क्योंकि वैल्यूएशन हवा में था! 😓 वहां से मैंने एक जरूरी सबक सीखा:
- 📌 वैल्यूएशन: हमेशा P/E, P/B Ratio चेक करें। अगर इंडस्ट्री से 50%+ ज्यादा है, तो सतर्क रहें।
- 🚀 ग्रोथ: पिछले 3 साल की Revenue और Profit ग्रोथ देखें। कम से कम 15%+ CAGR अच्छी मानी जाती है।
🎯 मेरा पॉजिटिव एक्सपीरियंस: 2022 में मैंने एक Pharma कंपनी ली – P/E था 20 (जबकि इंडस्ट्री का 25) और Revenue ग्रोथ 18% थी। आज तक 2x रिटर्न मिला!
💡 टिप: अगर कोई कंपनी “सस्ती” है (कम P/E) और साथ ही “तेजी से बढ़ रही” है, तो वो Golden Combo हो सकती है! जैसे 2010 का Page Industries – P/E 30 और ग्रोथ 25%+… आज देखो, P/E 80+ है!
शेयर में पैसा लगाने से पहले किन बातों पर गौर करना जरूरी है?
मेरा एक्सपीरियंस कहता है: “मल्टीबैगर शेयर वो नहीं जो सब खरीद रहे, बल्कि वो जिसे आप समझकर खरीदें!” अगर आपने ऊपर दी गई चेकलिस्ट फॉलो की, तो आप छोटी पर मजबूत कंपनियों को पहचान पाएंगे। जैसे 2000 में Page Industries (Jockey) के शेयर ₹200 के आसपास थे, लेकिन जिन्होंने उनके एक्सक्लूसिव ब्रांड राइट्स और ग्रोथ को समझा, आज वो ₹40,000+ के हैं!
मेरी सीख: मैंने 2019 में एक छोटी EV बैटरी कंपनी में निवेश किया (जिसका Debt ZERO था और ROE 22%!), क्योंकि उनका “लिथियम रिसाइक्लिंग टेक्नोलॉजी” मुझे यूनिक लगा। आज वो शेयर 5x हो चुका है! 🔥
सच कहूं तो, अगर आप ऊपर दी गई हर बात को पूरे ध्यान और समझ के साथ फॉलो करते हैं, तो याद रखें:
- “बड़ा नाम” ≠ “बड़ा रिटर्न”
- “समय” आपका सबसे बड़ा साथी है – छोटी कंपनियों को ग्रोथ के लिए 5-7 साल दें।
- 💡 अंतिम टिप: अगर चेकलिस्ट में सब कुछ टिक रहा है, तो “खरीदें और भूलें” वाला फंडा अपनाएं। जैसे मैंने किया! 😊
(यकीन मानिए, यह चेकलिस्ट मेरे 80% नुकसानों को बचा चुकी है… आप भी ट्राई करके देखें!)
शेयर को खरीदने से पहले क्या ध्यान रखना चाहिए?

📌 शेयर खरीदने से पहले किन बातों का रखें ध्यान?
Factors to Consider Before Buying a Stock — आपने ऊपर की पूरी चेकलिस्ट पढ़ी होगी। लेकिन अब मैं आपको बताने जा रहा हूँ कि यह चेकलिस्ट पढ़ना इतना जरूरी क्यों है, और यह आपको किस तरह एक समझदार निवेशक बना सकती है।
✅ इस चेकलिस्ट को फॉलो करने से क्या फायदे हैं?
ये पॉइंट्स आपको न सिर्फ एक कंपनी की मौजूदा हालत समझने में मदद करेंगे, बल्कि ये भी बताएंगे कि उसमें भविष्य की ग्रोथ की कितनी संभावनाएं हैं।
🧠 शेयर खरीदने से पहले ध्यान देने योग्य मुख्य बातें:
- बिज़नेस मॉडल की समझ:
कंपनी क्या बनाती है? उसका प्रोडक्ट या सर्विस कितने बड़े स्केल पर स्केलेबल है? अगर आपको यह समझ है, तो आप शॉर्ट टर्म की गिरावटों से नहीं घबराएंगे — बल्कि सही मौके पर और निवेश कर पाएंगे। - शेयरहोल्डिंग पैटर्न:
अगर प्रमोटर अपनी कंपनी में बड़ा स्टेक रखते हैं, तो इसका मतलब है कि उन्हें अपने बिजनेस पर भरोसा है। वहीं FII और DII की हिस्सेदारी से भी निवेशकों की रुचि का पता चलता है। - मैनेजमेंट और विज़न:
कंपनी के प्रमोटर्स और टॉप मैनेजमेंट का ट्रैक रिकॉर्ड और विज़न बेहद जरूरी है। वे कंपनी को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? क्या उन्होंने पहले भी सक्सेसफुल कंपनी चलाई है? - डिविडेंड हिस्ट्री:
कंपनी की डिविडेंड देने की आदत आपको उसके कैश फ्लो और शेयरहोल्डर रिटर्न के प्रति कमिटमेंट के बारे में बताती है। यह लंबे समय के निवेशकों के लिए एक मजबूत संकेत है। - भविष्य की योजनाएं (Expansion & R&D):
कंपनी आने वाले समय में क्या नया करने वाली है? क्या वो नए बाजारों में उतर रही है, या टेक्नोलॉजी में निवेश कर रही है? - सेक्टर और कॉम्पटीटर्स की तुलना:
आपके द्वारा चुनी गई कंपनी अपनी इंडस्ट्री में कहां खड़ी है? कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई दूसरी कंपनी उसे पीछे छोड़ने वाली है? यह तुलना बहुत जरूरी है। - इनोवेशन और टेक्नोलॉजी:
क्या कंपनी समय के साथ खुद को अपडेट करती है? आज के जमाने में टेक्नोलॉजी से तालमेल रखने वाली कंपनियां ही लम्बे समय तक टिक पाती हैं।
“अच्छा शेयर नहीं, सही समझ और समय आपको सफल बनाता है।”
अगर आप ऊपर बताए गए बिंदुओं को ध्यान में रखेंगे, तो सिर्फ रिटर्न ही नहीं, बल्कि एक समझदारी भरा पोर्टफोलियो भी बना पाएंगे।
FAQs (शेयर खरीदने से पहले क्या करना चाहिए)
किसी शेयर में पैसा लगाने से पहले क्या करना चाहिए?
शेयर में निवेश करने से पहले कंपनी की बुनियादी जानकारी जैसे उसका बिजनेस मॉडल, फाइनेंसियल हेल्थ, मार्केट पोजिशन और सेक्टर ट्रेंड्स का विश्लेषण करना चाहिए। साथ ही, कंपनी की ग्रोथ पोटेंशियल और मैनेजमेंट की पारदर्शिता को भी समझना जरूरी है, ताकि आप सही समय पर बेहतर निवेश निर्णय ले सकें।
शेयर में निवेश करते वक्त कौन-कौन सी चीजों का ध्यान रखना चाहिए?
निवेश से पहले कंपनी की बैलेंस शीट, फाइनेंशियल रेश्यो, डेब्ट लेवल, प्रोफिट ग्रोथ, और शेयरहोल्डिंग पैटर्न जरूर जांचें। साथ ही, सेक्टर की स्थिति और प्रतिस्पर्धी कंपनियों से तुलना करना भी जरूरी होता है ताकि रिस्क को कम किया जा सके।
कौन सा शेयर खरीदना चाहिए जो भविष्य में अच्छा मुनाफा कमा कर दे?
ऐसे शेयर चुनें जिनका बिजनेस मॉडल टिकाऊ हो, ग्रोथ कॉन्सिस्टेंट हो, और कंपनी का मैनेजमेंट भरोसेमंद हो। इसके अलावा, कंपनी इनोवेशन पर जोर देती हो और भविष्य के लिए स्पष्ट योजनाएं रखती हो तो उसमें मुनाफे की संभावना ज्यादा होती है।
शेयर खरीदने से पहले कौन कौन से फैक्टर्स ध्यान रखना चाहिए?
शेयर खरीदने से पहले कंपनी के फाइनेंसियल्स (जैसे ROI, ROE, P/E रेश्यो), प्रबंधन की गुणवत्ता, सेक्टर की स्थिरता, और कंपनी की प्रतिस्पर्धी स्थिति का गहन मूल्यांकन करें। साथ ही, हाल की खबरें, FII-DII गतिविधि और वैल्यूएशन भी देखने चाहिए।
निष्कर्ष (Share खरीदने से पहले क्या करना चाहिए)
📌 निष्कर्ष: चेकलिस्ट फॉलो करें, मल्टीबैगर पाएं!
मैंने खुद अपने 10 सालो के निवेश के सफर में यही सीखा: “अच्छा शेयर नहीं, सही टाइमिंग आपको अमीर बनाती है”। आप अगर ऊपर दी गई चेकलिस्ट फॉलो करेंगे, तो किसी “छोटी मगर मजबूत” कंपनी को पहचान पाएंगे। जैसे 90 के दशक में Infosys के शेयर ₹100 के आसपास थे, लेकिन जिन्होंने उसका “क्लाउड कंप्यूटिंग में फोकस” और “डेट-फ्री बैलेंस शीट” देखकर निवेश किया, आज वो करोड़ों में हैं!
मेरी गलती से सीखें: मैंने 2018 में एक Pharma कंपनी (जिसका Debt-to-Equity 0.5 था और ROE 18%!) में निवेश किया, लेकिन “मैनेजमेंट पर रिसर्च नहीं की”। बाद में पता चला CEO पहले भी एक कंपनी को डूबा चुका था। 2 साल बाद शेयर 60% गिर गया! 😓
🔥 प्रो टिप:
शेयर मार्केट “समुंदर” है, और यह चेकलिस्ट आपकी “जाल” है। अगर धैर्य से काम लेंगे, तो मल्टीबैगर मछली जरूर फंसेंगी। लेकिन याद रखें:
- 🚫 “भेड़चाल” में न चलें (जैसे अभी EV शेयरों में हुआ)।
- 🔄 हर 6 महीने में अपने शेयर्स की चेकलिस्ट दोबारा वेरिफाई करें।
💡 अंतिम बात: Rakesh Jhunjhunwala ने कहा था – “शेयर बाजार पैसा उन्हें देता है, जो इंतजार करना जानते हैं।” इसलिए चेकलिस्ट फॉलो करें, रिसर्च करें, और “समय” को अपना साथी बनाएं!
*(मेरी तरह शुरू में 2-3 गलतियां होंगी, लेकिन यही चेकलिस्ट आपको एक स्मार्ट इन्वेस्टर बना देगी!)*
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- शेयर मार्केट में सबसे पहले क्या सीखना चाहिए?
- शेयर मार्केट में ट्रेडिंग करने से पहले क्या देखना चाहिए?
- डे ट्रेडिंग में पैसा लगाने से पहले क्या करना चाहिए?
- शेयर मार्केट से पैसे कैसे कमाए?